"निरंतर" की कलम से....
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अब तो बता दो
तुम्हारी ज़िन्दगी की
अलमारी के
किस कौने में
तुमने मुझे रखा है
नए कपड़ों के जैसे
पहले खंड में,
जब भी बन ठन कर
जाना होता
उन्हें पहनते हो
या पसंदीदा
कपड़ों के जैसे
आँखों के बिलकुल
सामने
नए कपडे होते हुए भी
उन्हें ही पहनने का
मन करता
या मुझे उन
पुराने कपड़ों के जैसे
रखा है
जिन्हें ना पहने का
मन करता
ना ही फैकने का
मन करता है
या फिर टोपी,रुमाल ,
मोजों की तरह
और लोगों के साथ
एक कौने में सजा
रखा है
जो भी हाथ में आ जाए
मौके और ज़रुरत के
हिसाब से
उसे काम में ले लो
अब तो बता दो
ज़िन्दगी में तुमने
मेरा कौन सा स्थान
तय कर रखा है
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