Menu
blogid : 8789 postid : 13

कुछ लम्हों के लिए ही सही

"निरंतर" की कलम से....
"निरंतर" की कलम से....
  • 30 Posts
  • 77 Comments

जब परेशां होता हूँ
उजाला भी काटने को
दौड़ता
अन्धेरा अच्छा लगने
लगता
मन करता आँखें बंद कर
किसी कौने में दुबक
जाऊं
कोई चेहरा
नज़र नहीं आये मुझे
हर शख्श ,हर बात को
भूल जाऊं
बचपन की यादों में
लौट जाऊं
कुछ लम्हों के लिए
ही सही
फिर से हंसने लगूँ
04-02-2012
107-17-02-12

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply