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क्या यही उसका न्याय है ?

"निरंतर" की कलम से....
"निरंतर" की कलम से....
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सांयकाल का समय
गाँव के कौने में बनी
फूस की झोंपड़ी
गोबर से लिपा फर्श
दो चार बर्तन
वो भी सब खाली
खाने को कुछ भी नहीं
भूख से व्याकुल बूढ़ी माँ
उदिग्नता से पुत्र की
प्रतीक्षा कर रही थी
उसका एकमात्र सहारा
काम से लौटेगा
खाने के लिए कुछ लाएगा
उसने सुबह से कुछ नहीं
खाया था
केवल पानी पी कर
काम चलाया था
आँखों में आशा के भाव
स्पष्ट झलक रहे थे
दूर धूल उड़ने लगी
कुछ आवाजें सुनायी
पड़ने लगी
उदिग्नता कम होने लगी
लोगों के
पास आने पर देखा
पुत्र अकेला नहीं आया था
उसके मृत शरीर के साथ
कुछ लोग भी थे
जिन्होंने बताया
दुर्घटना का शिकार हो
काल कवलित हो गया था
बूढ़ी माँ
चुपचाप देखती,सुनती रही
आँखों से अश्रुओं की धारा
बह निकली
निढाल हो कर लुडक पडी
पुत्र के पास परलोक
पहुँच गयी
आँखें आकाश को देखती हुयी
खुली की खुली ही रह गयी
मानों परमात्मा से
पूंछ रहीं हो
क्या यही उसका
न्याय है ?
17-02-2012
181-92-02-12

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