"निरंतर" की कलम से....
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जीवन में
जब अंधियारा हो
ह्रदय तलाशता कोई
सहारा हो
मन व्यथित हो कर
रोता हो
कोई अजनबी ऐसा
मिल जाए
सुन हाल तुम्हारे
रो जाए
सीने से तुम्हें फिर
लगा ले
दे साथ तुम्हारा
भरपूर
ना थके ना रुके
जब तक तुम्हें ना
हंसा दे
मत पूँछिये ऐसे
अजनबी को
क्या कहिये ?
या तो मसीहा या
फिर खुदा कहिये
18-02-2012
191-102-02-12
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