"निरंतर" की कलम से....
- 30 Posts
- 77 Comments
नन्ही चिड़िया ने पंख
फैलाए
उमंग उत्साह से उड़ चली
आकाश को नापने
पहुँच गयी ऊंचे पर्वत
के पास
बार बार प्रयत्न किया
सफलता से दूर रही
पार ना कर सकी पर्वत को
थक हार मुंह लटका कर
लौट आयी
फिर माँ के पास
हार से व्यथित
करने लगी शिकायत माँ से
क्यों नहीं सिखाया उसने
पर्वत को पार करने
का राज़
माँ मुस्कारा कर बोली
सब्र और संयम रखो
पर्वत भी पार करोगी
एक दिन
थोड़ी शक्ति और संजो लो
ठीक से उड़ना सीख लो
फिर पर्वत को पार करो
सफलता
कदम अवश्य चूमेगी
पर्वत को पार करने की
इच्छा एक दिन
अवश्य पूरी होगी
10-03-2012
335-69-03-12
Read Comments