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नन्ही चिड़िया ने पंख फैलाए

"निरंतर" की कलम से....
"निरंतर" की कलम से....
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नन्ही चिड़िया ने पंख
फैलाए
उमंग उत्साह से उड़ चली
आकाश को नापने
पहुँच गयी ऊंचे पर्वत
के पास
बार बार प्रयत्न किया
सफलता से दूर रही
पार ना कर सकी पर्वत को
थक हार मुंह लटका कर
लौट आयी
फिर माँ के पास
हार से व्यथित
करने लगी शिकायत माँ से
क्यों नहीं सिखाया उसने
पर्वत को पार करने
का राज़
माँ मुस्कारा कर बोली
सब्र और संयम रखो
पर्वत भी पार करोगी
एक दिन
थोड़ी शक्ति और संजो लो
ठीक से उड़ना सीख लो
फिर पर्वत को पार करो
सफलता
कदम अवश्य चूमेगी
पर्वत को पार करने की
इच्छा एक दिन
अवश्य पूरी होगी
10-03-2012
335-69-03-12

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