"निरंतर" की कलम से....
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उस से नाम पूछा
उसने बता दिया
माँ,बाप का नाम पूछा
चुप रहा
जाती, धर्म पूछा
चुप रहा
गाँव,शहर पूछा
चुप रहा
फिर धीरे से बोला
आज तक किसी से
कहा नहीं
आज तुमको कहता हूँ
नफरत किसी से
रखता नहीं
धरती को माँ,
देश को पिता,
इंसानियत को धर्म
मानता हूँ
अनाथ होते हुए भी
खुद को अनाथ नहीं
मानता हूँ
इंसान की जात हूँ
सम्मान से जीता हूँ
निरंतर यही पैगाम
देता हूँ
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