"निरंतर" की कलम से....
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कैसे हाँ कहूँ ?
जब ना कहना चाहता हूँ ?
पर ना भी कैसे कहूँ?
समझ नहीं पाता हूँ
झंझावत में फंसा हूँ
रिश्तों के बिगड़ने का खौफ
दुश्मनी मोल लेने का डर
मुझे ना कहने से रोकता है
कैसे उसूलों को तोडूँ
मन को दुखी कर के हाँ कहूँ
दुविधा में फंसा हूँ
क्यों ना एक बार
नम्रता से ना कह दूं
सदा के लिए दुविधा से
मुक्ती पा लूँ
कुछ समय के लिए
लोगों को नाराज़ कर दूं
समय के अंतराल में
सब समझ जायेंगे
आदत समझ कर भूल
जायेंगे
मेरा मन खुश रहेगा
फिर हाँ ना के झंझावत में
नहीं फंसेगा
03-06-2012
557-77-05-12
(जीवन में अक्सर ऐसी स्थिति आती है जब इंसान ना कहना चाहता है,पर रिश्तों में कडवाहट के डर से घबराता है ,और अनुचित बात के लिए भी हाँ कह कर मन को दुखी करता है)
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